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यदु॑षो॒ यासि॑ भा॒नुना॒ सं सूर्ये॑ण रोचसे । आ हा॒यम॒श्विनो॒ रथो॑ व॒र्तिर्या॑ति नृ॒पाय्य॑म् ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

yad uṣo yāsi bhānunā saṁ sūryeṇa rocase | ā hāyam aśvino ratho vartir yāti nṛpāyyam ||

पद पाठ

यत् । उ॒षः॒ । यासि॑ । भा॒नुना॑ । सम् । सूर्ये॑ण । रो॒च॒से॒ । आ । ह॒ । अ॒यम् । अ॒श्विनोः॑ । रथः॑ । व॒र्तिः । या॒ति॒ । नृ॒ऽपाय्य॑म् ॥ ८.९.१८

ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:9» मन्त्र:18 | अष्टक:5» अध्याय:8» वर्ग:33» मन्त्र:3 | मण्डल:8» अनुवाक:2» मन्त्र:18


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शिव शंकर शर्मा

प्रभात का वर्णन करते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - (उषः) हे उषा देवि ! (यदा) जब-२ तू (भानुना) प्रकाश के साथ (यासि) गमन करती है, तब-२ तू (सूर्य्येण) सूर्य्य के साथ (सं+रोचसे) सम्यक् दीप्यमान होती है। उसी काल में हमारे (अश्विनोः) माननीय राजा और अमात्यादि वर्गों का (अयम्+रथः) यह रथ (नृपाप्यम्) पालनीय मनुष्यों से युक्त (वर्तिः) गृह-गृह में (आ+याति) आता है ॥१८॥
भावार्थभाषाः - प्रातःकाल उठकर मन्त्रिदलों के साथ राजा प्रजा के गृह पर जाकर मङ्गल-समाचार पूछे ॥१८॥
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (उषः) हे उषादेवि ! (यत्) जब आप (भानुना, यासि) सूर्यकिरणों के साथ मिलती हो (सूर्येण, संरोचसे) और सूर्य के साथ दीप्त=लीन हो जाती हो, तब (नृपाय्यम्) शूरों से रक्षित (अयम्, अश्विनोः, रथः) यह सेनापति तथा सभाध्यक्ष का रथ (वर्त्तिः, ह, याति) अपने घर को चला जाता है ॥१८॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में यह वर्णन किया है कि सभाध्यक्ष तथा सेनाध्यक्ष उषाकाल से अपने रथों पर चढ़कर राष्ट्र का प्रबन्ध करते हुए सूर्योदय में घर को लौटते हैं, उनका प्रबन्ध राष्ट्र के लिये प्रशंसित होता है। इसी प्रकार जो पुरुष उषाकाल में जागकर अपने ऐहिक और पारलौकिक कार्यों को विधिवत् करते हैं, वे अपने मनोरथ में अवश्य कृतकार्य्य होते हैं ॥१८॥
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शिव शंकर शर्मा

प्रभातवर्णनमाह।

पदार्थान्वयभाषाः - हे उषः=हे प्रभातदेवि ! यदा त्वम्। भानुना=प्रकाशेन सह। यासि=व्रजसि। तदा त्वं सूर्य्येण सह। संरोचसे=संदीप्यसे। तदैव। अस्माकं माननीययोरश्विनो राज्ञोरयं रथः। नृपाय्यम्=नरो नराः पालनीया यत्र तादृशं वर्तिर्गृहं गृहं प्रति आयाति ॥१८॥
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (उषः) हे उषः (यत्) यदा (भानुना) किरणेन (यासि) मिलसि (सूर्येण, संरोचसे) सूर्येण सह च दीप्यसे तदा (अश्विनोः) तयोः (नृपाय्यम्, अयं, रथः) शूररक्षितयानम् (वर्त्तिः, ह, आयाति) गृहं प्रति गच्छति ॥१८॥